कुछ यादें गुज़रे हुए पलों की .......

Tuesday, 9 April 2013

इम्तिहान

मैं अपनी हर ग़ज़ल में तेरा नाम लिखता हूँ ,
कभी गुलशन, कभी चिलमन, तो कभी अंजुम लिखता हूँ ।

साया बनके चलने का वादा किया था किसी जन्म में तुझसे,
मैं आज भी तुझे अपना हमनाम लिखता हूँ ।

मेरा हर लफ्ज़ महके तेरी खुशबू से,
आज एक ऐसा सूफियाना कलाम लिखता हूँ ।

मेरी जुस्तजू को तेरी चाहत का किनारा नसीब हो,
आज फिर इश्क का ऐसा इम्तिहान लिखता हूँ ।

मेरी हस्ती का राज़ सिर्फ जिसे हो मालूम,
आ, तुझे अपना एक राज़दान लिखता हूँ ।।

                                                        -- दिवांशु गोयल 'स्पर्श'

#चिलमन - पर्दा (यहाँ पर्दानशीं)
   अंजुम - सितारे
   जुस्तजू- तलाश, खोज
   राजदान - सारे राज़ जानने वाला 

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