उस पीतल की थाली में,
रखे हुए कुछ,
चावल के दानों को,
बीनने की कोशिश करता हूँ जब,
माँ, तुम बहुत याद आती हो मुझे।
धो के, करीने से इस्त्री की हुई,
मेरे स्कूल की सफ़ेद शर्ट,
और आठवीं क्लास की सर्दियों में,
तुम्हारे बनाये उस स्वेटर को,
आज भी सोचता हूँ जब,
माँ, तुम बहुत याद आती हो मुझे।
तुम्हारे साथ रसोई में,
रोटियाँ बेलने की जिद और,
मेरे माथे पे तेरे कोमल हाथों का 'स्पर्श'
आज भी सोचता हूँ जब,
माँ, तुम बहुत याद आती हो मुझे।
-दिवांशु गोयल 'स्पर्श'
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