कुछ यादें गुज़रे हुए पलों की .......

Friday, 28 June 2013

क्या कभी ऐसा होगा?


क्या कभी ऐसा होगा? एक सवाल खुद से…. 
क्या मेरी ये ज़िन्दगी सिर्फ प्रेम-पथ पर ही बढ़ेगी,
क्या मेरी ये जवानी श्रृंगार में व्यर्थ ही ढलेगी,
क्या मेरी कहानी का भी बस यही अंजाम होगा,
क्या मुझे कभी ओज की उस लेखनी पर अभिमान होगा,

क्या मुझे कभी स्वप्न भी इस धरा के आयेंगे,
क्या मेरे ये अंग भी किसी रोज़ काम आयेंगे,
कब मुझे फकीरों की फकीरी पे मान होगा,
कब मुझे उन हिन्द के वीरों पे अभिमान होगा,

कब मेरे गीतों से देशभक्ति की गंगा बहेगी,
कब मेरी कोशिश को कामयाबी की संज्ञा मिलेगी,
कब मुझे आत्म की ताकत का संज्ञान होगा,
क्या मेरे रथ पे भी कोई कृष्ण विराजमान होगा,

कब मेरा इस देश की मिट्टी से श्रृंगार होगा,
कब मेरे मन में उफनती लहरों का सा ज्वार होगा,
कब मेरे प्राणों को तपती रेत सी ज्वाला मिलेगी,
कब मेरी इस भूमि पे शहीदों सी चिता जलेगी,

कौन तेरी रक्त की बूंदों का प्रतिशोध लेगा,
क्या मेरी इस देह को कभी इतना बल मिलेगा,
क्या परवानों की बस्ती में मेरा भी एक नाम होगा,
क्या तिरंगे में लिपटने का मुझे कभी गुमान होगा।

-दिवांशु गोयल 'स्पर्श'

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