मनोरम स्पर्श
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कुछ यादें गुज़रे हुए पलों की .......
Saturday, 8 June 2013
मेरा अभिमान हो
आज मुझे फिर इस बात का गुमान हो,
मस्जिद में भजन, मंदिरों में अज़ान हो,
खून का रंग फिर एक जैसा हो,
तुम मनाओ दिवाली ,मैं कहूं रमजान हो,
तेरे घर भगवान की पूजा हो,
मेरे घर भी रखी एक कुरान हो,
तुम सुनाओ छन्द 'निराला' के,
यहाँ 'ग़ालिब' से मेरी पहचान हो,
हिंदी की कलम तुम्हारी हो,
यहाँ उर्दू मेरी जुबान हो,
बस एक बात तुझमे मुझमे,
वतन की खातिर यहाँ समान हो,
मैं तिरंगे को बलिदान दूँ,
तुम तिरंगे पे कुर्बान हो।
-दिवांशु गोयल 'स्पर्श'
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